Monday, November 9, 2009

kshanika

ज्ञान और अनुभूति
अक्सर टकराते
पृथक, शब्द टटोलते
पर संग रहकर ही
सार्थक कर पाते
मनुष्य का जीवन ...

gazal

जी रहा हूँ या की जाने मर रहा हूँ मैं
ज़िन्दगी है दर्द उसको पी रहा हूँ मैं ....

अल्फाज़ को तुम तौल कर ही बोलना साथी ,
फिर न कहना की बहुत पछता रहा हूँ मैं ....

झुक जाएगा अम्बर ज़मीन की हर पुकार पर ,
जानता हूँ फिर भी क्या झुठला रहा हूँ मैं .....

क्या सुखन है खुद को देने मैं ज़रा तकलीफ ,
प्यार शायद इसलिए ही कर रहा हूँ मैं .....

दीपक

मैं दीपक हूँ कहता है वह
चल मैंने ये बात है मानी
शायद ये कुछ हद तक सच है
है अँधियारा पास दीवानी....
जलती सी लौ इधर उधर
इठराती ,इतराती जलती
तब जलता है कहीं ये मनवा
क्यों खुद को न रोशन करती ...
वह रे ! भगवन तेरी महिमा
रही अबूझी , रही अजानी
मैं भी चुप सी धीमे धीमे
जलती हूँ बनकर अनजानी ....

Sunday, October 11, 2009

दीपावली

मोम मैं छुपी हुई बाती
जलाती है खुद को
धीमे -धीमे से
उनकी पंक्तियाँ
सुसज्जित करती है
हमारे घर -आँगन को.
कितनी सुंदर लगती है ...
फुल्झादियों की रौशनी
और पटाखों की
ज़ोरदार, धमाकेदार
आवाज़ के साथ
जगमगा उठता है
आसमान ...
जैसे पल-पल मैं
अपने आभूषण
बदलता हो ..
उनकी दमक और खनक
चक्शुप्रिया और कर्णप्रिय सी
लगती हो ..
उतसाह, उमंग और
खिलखिलाहट की लड़ियाँ
जैसे एक धागे मैं
पिरो दी गयी हो
और घर आँगन मैं
रौशनी करने के लिए
उसके बारूद में ज़रा सी
चिंगारी छोड़ दी गयी हो ....
अहो! हर्षोल्लास से सराबोर
हर गली , हर कौना...
सब तरफ ख़ुशी ,
हर तरफ धुआं ;
और धुएं में गुम होती
हमारी दीपावली ...
धमाकों से डरती है
दीप ज्योति ,
शायद इसीलिए
बुझ जाती है
बस,
बची रहती है
प्रतिस्पर्धा ,
आडम्बर
और कुछ देर में
धूमिल हो जानेवाली
मुस्कान...
इन्ही के बीच
संवेदनशील
बेचारा मन
ढूढता है
चिर-परिचित
त्यौहार में,
दीप को,
ज्योति को
दीपावली ......

Friday, September 25, 2009

gazal

जी रहा हूँ या की जाने मर रहा हूँ मैं
ज़िन्दगी है दर्द उसको पी रहा हूँ मैं ....

अल्फाज़ को तुम तौल कर ही बोलना साथी ,
फिर न कहना की बहुत पछता रहा हूँ मैं ....

झुक जाएगा अम्बर ज़मीन की हर पुकार पर ,
जानता हूँ फिर भी क्या झुठला रहा हूँ मैं .....

क्या सुखन है खुद को देने मैं ज़रा तकलीफ ,
प्यार शायद इसलिए ही कर रहा हूँ मैं .....

Sunday, August 23, 2009

geet

आँसुओं को रोक मत,
ये बात मानो प्रिय तुम।
नैन लगते हैं थके से,
बोझ उतारो प्रिय तुम।
जन्दगी मुश्किल हुई
मानते हैं हम सभी
शब्द-भेदी बाण से
भेदना न दिल कभी
धीर हो तो जीत है
राहगीर जानो तुम। नैन......।।
प्रकृति की गोद में
खेलता है हर मनु
सीखता कहाँ से है
बोलना कटु-कटु
पाश्विक प्रवृत्ति को
दो जरा विराम तुम। नैन......।।
मस्त फिजाओं में किसी
रागिनी को छेड दें
उमंग से भरी हुई
श्वास थोडी खींच ले
मुसीबतों से खेलना
सीख लोगे प्रिय तुम। नैन.....।।

geet

geet
एक सितारा टिमटिमाता नजर आया है,
मेरे मन को बहलाने कोई आया है।

दुःख है बडा आँसुओं में डूब गये हम,
भावनाओं के भँवर से जूझ रहे हम,
अब आस्थाओं का सवेरा मुस्कुराया है।

बरखा की बूँद गिरी और धरा खिली,
खेतों में फसलों की चादर मिली,
मस्त परिन्दा भी अब गुनगुनाया है।

पंछी बन बावरा मन घूमता फिरे,
डाल-डाल, पांत-पांत झूमता फिरे,
गीतों के मधुरस से मन भिगोया है।

बीती हुई बात को तू सोचता है क्यूँ,
बार-बार मन की परत खोलता है क्यूँ,
नीम की कडवाहटों से रस बनाया है।

लग रही निशा मुझे भी कुछ भली-भली
देखे हैं सुख-दुःख हर गाँव हर गली
तजुर्बों को मैंने साँसों में पिरोया है।

Bhawana

Tuesday, August 18, 2009

kshanika

आसमान
बहुत दूर है
छूने की चाह
मन में भरपूर है ....
पैरों की ज़मीन
जो करीब थी
आज बहुत दूर है ...
पैसे और शोहरत के लिए
छोड़ दिया घर मैंने
आकांक्षाएं इंसान की
बड़ी क्रूर है....

do line ....

स्वप्न है एक भावना ,
है स्वप्न की जीवात्मा ,
ढूढता है मन जिसे
वो है कहाँ परमात्मा ..?????

gazal

सब कुछ अब तो एक फ़साना लगता है
जीना तो बस एक बहाना लगता है ...

सब के सब जाने पहचाने लगते है
बेसुध बेबस एक दीवाना लगता है ...

उल्फत की गलियों में फिरता रहता है
यादें तो बस एक तराना लगता है ...

चलते-चलते बार - बार रुक जाता है
हर चेहरा जाना - पहचाना लगता है ...

हंस- हंसकर अपने किस्से कह जाता है
उसका आना मुझे सताना लगता है ...

gazal

उसकी आँखों में आंसू के मोती रहे
तो हसाया नहीं कीजिये ...
उसके हाथों में गम की लकीरें रहे
तो खुशियाँ नहीं दीजिये ...

मेरे मन की ख़ुशी भी उसी मन रहे
मेरे लैब की हंसी भी उसी को मिले
वो सपने सुनहरे जब बुनता हो तो
नश्तर न चुभो दीजिये ...

वो हर वक्त तेरी नज़र में रहे
वो चले तो तू उसका सहारा बने
और ज़मी-आसमा जब मिलते हो तो
उनको तकलीफ न दीजिये ....

gazal

खामोशियाँ भी ज़हर घोलती है ...
बातें हमेशा नहीं बोलती है ....

रहता है चुप आजकल वो हरदम
दिल की लगी भी बहुत बोलती है ....

लाखों सवाल उठ रहें ज़हन में
तकदीर भी क्या गज़ब तोलती है ....

शायद नशे में रहता है अब भी
सर जो छाडे तो बहुत बोलती है ...

चौराहे पर खड़ी थी मोहब्बत
आवारा गलियों में डोलती है .....

कहा था न मैंने परवाना न बन
शम्मा जलाकर ही मन तोलती है .....

Wednesday, August 12, 2009

anaam rishte

rishton ki
giraft mei
kaid hai
har manushya ...

bandhta hai
ek hi baar
par jeevan bhar ke liye
kabhi sath nahi choottaa...
chaahe man baeri ho jaaye
chaahe algaav ho.....

fir bhi antas mei kahin
ghar banaye rahte hai ye...

kuchh jude - unjude bhi
meethe bhi , kadve bhi
adhoore pade kuchh rishte
galiyeren dhoodhte hai
par fir bhi ta-umra
apna astitva talaashte rahte hai
jeete hai
bina astitva ke
kuchh anaam rishte .....

Tuesday, August 11, 2009

kitne din beete
khaali ratiya
yaad aati hai
teri batiya ...

jiske aane se
khil utha thhaa gul mera
bolti hai veeraan padi
vo galiyan.....

kitabon mei sambhaale hue
rakha thhaa jinhe
bejaan si mahakti hai
fir kaliya ......

Tuesday, July 28, 2009

bas yu hi ...

vo paigaam bhi jhootha hai jisko log naa maane ..
dil ki lagi hai kya jise majbooriya jaane
vo khwaab hai usko, hansi ek khwaab rahne do
na tu kar dillagi -e-dil ki jab kamjoriya jaane ..

Wednesday, July 15, 2009

kshanika

पगलाए मेरे कदम
मेरी कलम
मेरा मन
आँख बंद
खोजू उसे
जो है नहीं
फिर भी है सभी के मन
आत्मा परम .....

kshanika

हर तरफ मातम सा छाया
खो गयी है हर ख़ुशी
लग रहा है घर में मेरे
हो गया फिर चुप कोई
आँख है सबकी भरी
शून्य में निहारती
दर्द ओंठों से सिये
सिसकियों को मारती
आहात हुए वो कौन है
घायल सी कोमल भावना
मन में उपजी थी कभी वो
मृत हुई जो कामना ......
post scrap cancel

kshanika

जिसकी हर आवाज़ पर
रूह काँप उठती थी
रसोई में काम करते वक्त
करछी छूट जाती थी
थोडा-थोडा सा मन
सहम जाता था
एक भय सदा ही
छाया रहता था
जिसके शब्दभेदी बाण
अक्सर बेधते थे
बात-बेबात मुखसे
निकल जाते थे
साडी के आँचल को
खींचकर लपेटती थी खुदको
कहीं आहात न हो
मेरी देह सोचती थी
पर मन
लहूलुहान हो जाता था
बार-बार मरकर भी
जी जाता था
उसी से जिससे मेरी
कभी न बनी
उसी की कमी क्यों अब
खलने लगी .......

kshanika

वो परमेश्वर
सर्वोपरि
अधिकारपूर्वक
करता है वरण
और...........
किंचित मन नहीं टटोलता
बस तन ही ........
आत्मा तक नहीं पहुँचता
पर फिर भी
वो परमेश्वर
सर्वोपरि..........

Monday, July 13, 2009

एक टूटन स्वप्न की है
एक टूटन अहम् की
सिर उठा कर चल न पाए
ऐसी है शर्मिंदगी .......
पेड की नव कोपले
हसती हुई सी लग रही
कर रही किलोल है
मखोल हुई ज़िन्दगी .........
उठ रही है टीस भी
तकलीफदेह आह भी
सांस रूककर आ रही है
हो रही है दिल्लगी ......
जी बहुत भारी सा है
मदमास्तियाँ खारिज हुई
देख ये भी रंग है
बदनीयती है संगिनी ..........

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अपने विचारों मैं उलझी किन राहों मैं नहीं भटकी खुद की तलाश में वक्त को बिताती हूँ पर जवाब नहीं पाती हूँ .... लोगों से मिलती हूँ ताल भी मिलाती हूँ अजनबी होने से थोडा खौफ खाती हूँ पर खुद को बहुत दूर बहुत दूर पाती हूँ ....