ज्ञान और अनुभूति
अक्सर टकराते
पृथक, शब्द टटोलते
पर संग रहकर ही
सार्थक कर पाते
मनुष्य का जीवन ...
Monday, November 9, 2009
gazal
जी रहा हूँ या की जाने मर रहा हूँ मैं
ज़िन्दगी है दर्द उसको पी रहा हूँ मैं ....
अल्फाज़ को तुम तौल कर ही बोलना साथी ,
फिर न कहना की बहुत पछता रहा हूँ मैं ....
झुक जाएगा अम्बर ज़मीन की हर पुकार पर ,
जानता हूँ फिर भी क्या झुठला रहा हूँ मैं .....
क्या सुखन है खुद को देने मैं ज़रा तकलीफ ,
प्यार शायद इसलिए ही कर रहा हूँ मैं .....
ज़िन्दगी है दर्द उसको पी रहा हूँ मैं ....
अल्फाज़ को तुम तौल कर ही बोलना साथी ,
फिर न कहना की बहुत पछता रहा हूँ मैं ....
झुक जाएगा अम्बर ज़मीन की हर पुकार पर ,
जानता हूँ फिर भी क्या झुठला रहा हूँ मैं .....
क्या सुखन है खुद को देने मैं ज़रा तकलीफ ,
प्यार शायद इसलिए ही कर रहा हूँ मैं .....
दीपक
मैं दीपक हूँ कहता है वह
चल मैंने ये बात है मानी
शायद ये कुछ हद तक सच है
है अँधियारा पास दीवानी....
जलती सी लौ इधर उधर
इठराती ,इतराती जलती
तब जलता है कहीं ये मनवा
क्यों खुद को न रोशन करती ...
वह रे ! भगवन तेरी महिमा
रही अबूझी , रही अजानी
मैं भी चुप सी धीमे धीमे
जलती हूँ बनकर अनजानी ....
चल मैंने ये बात है मानी
शायद ये कुछ हद तक सच है
है अँधियारा पास दीवानी....
जलती सी लौ इधर उधर
इठराती ,इतराती जलती
तब जलता है कहीं ये मनवा
क्यों खुद को न रोशन करती ...
वह रे ! भगवन तेरी महिमा
रही अबूझी , रही अजानी
मैं भी चुप सी धीमे धीमे
जलती हूँ बनकर अनजानी ....
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- bhawana
- अपने विचारों मैं उलझी किन राहों मैं नहीं भटकी खुद की तलाश में वक्त को बिताती हूँ पर जवाब नहीं पाती हूँ .... लोगों से मिलती हूँ ताल भी मिलाती हूँ अजनबी होने से थोडा खौफ खाती हूँ पर खुद को बहुत दूर बहुत दूर पाती हूँ ....