जाने कुछ कैसा होता है
हँसता है ना मन रोता है ..
चीज़ें रखकर भूल रहा मन
खुद को तब से ढूँढ रहा है ...
ना मालूम किधर छूटा था
तितली को मन पकड़ रहा था ...
वो तो गुम हो गयी आँख से
फिर भी मनवा ढूँढ रहा था ...
धरती और आकाश को नापा
फिर भी जाने कहा छुपा था..
मेरा मन था पगलाया सा
इसीलिए तो नहीं मिला था....
Saturday, March 12, 2011
Friday, March 11, 2011
ख़याल
सोचा की मैं दूर कहीं
जाकर बिल में छुप जाऊ
कभी नहीं दीखू तुझको
और कभी याद ना आऊ....
बहोत दिनों तक इस ख़याल को
मन में अपने पाला
बहोत दिनों तक बात नहीं की
चाहे मन तड़पाया....
चाह जगी मन में फिर इक दिन
देख तुझे मैं पाऊ
दूर से तुझको देख कहीं मैं
फिर से छुप-छुप जाऊ....
पर मेरा पागल सा मनवा
इसी आस में रहता
कैसे भी आकर के मुझको
तू अपनी सी कहता ....
लुका छुपी में खुद को अब मैं
थका थका सा जानूं
तू ही मेरी धड़कन, जीवन
तुझ बिन कैसे मानूं....
जाकर बिल में छुप जाऊ
कभी नहीं दीखू तुझको
और कभी याद ना आऊ....
बहोत दिनों तक इस ख़याल को
मन में अपने पाला
बहोत दिनों तक बात नहीं की
चाहे मन तड़पाया....
चाह जगी मन में फिर इक दिन
देख तुझे मैं पाऊ
दूर से तुझको देख कहीं मैं
फिर से छुप-छुप जाऊ....
पर मेरा पागल सा मनवा
इसी आस में रहता
कैसे भी आकर के मुझको
तू अपनी सी कहता ....
लुका छुपी में खुद को अब मैं
थका थका सा जानूं
तू ही मेरी धड़कन, जीवन
तुझ बिन कैसे मानूं....
प्रीत पराई
रात घनेरी धीमे-धीमे
होले से मन टीस लगाई
दुविधा मन की समझ ना आयी...
बात ज़रा सी कही किसी ने
सरल baat ही सत्य कहाई
पीड़ा क्षण में दूर भगाई...
ईश मानकर चली जिसे में
प्रेम-सुधा नयनन को भाई
क्या जाने क्यों प्रीत पराई ???
होले से मन टीस लगाई
दुविधा मन की समझ ना आयी...
बात ज़रा सी कही किसी ने
सरल baat ही सत्य कहाई
पीड़ा क्षण में दूर भगाई...
ईश मानकर चली जिसे में
प्रेम-सुधा नयनन को भाई
क्या जाने क्यों प्रीत पराई ???
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- bhawana
- अपने विचारों मैं उलझी किन राहों मैं नहीं भटकी खुद की तलाश में वक्त को बिताती हूँ पर जवाब नहीं पाती हूँ .... लोगों से मिलती हूँ ताल भी मिलाती हूँ अजनबी होने से थोडा खौफ खाती हूँ पर खुद को बहुत दूर बहुत दूर पाती हूँ ....