O Spirit! O Soul!
Take a time
Chill- pill
Happy happy
Mount a hill.
O Spirit! O Soul!
Be the one
The thoughts you own
Churn your brain
Leave the known.
O Spirit! O Soul!
Find a new
To one that's new
Which can be fit
The peice you knit.
O Spirit! O Soul!
Feel that , you think
Fixed at goal
You the type
The only sole.
O Spirit! O Soul!
Saturday, August 20, 2011
Sunday, July 10, 2011
aaina
aaina
sach
batlaata...
subah-
shaam ki
jaise rangat
vaisa hi toh
bimb dikhaata...
paardarshita
uski aise
khud ko
khud se
hee milvaataa...
bachpan se
vridhavastha tak
kitne - kitne
roop dikhaata ...
aaina ekdum
sach batlaata....
sach
batlaata...
subah-
shaam ki
jaise rangat
vaisa hi toh
bimb dikhaata...
paardarshita
uski aise
khud ko
khud se
hee milvaataa...
bachpan se
vridhavastha tak
kitne - kitne
roop dikhaata ...
aaina ekdum
sach batlaata....
Sunday, June 26, 2011
sher
mere dard ko jaanne ki koshish na kar
jana hai bahut door tujhe yaha na thahar...
jana hai bahut door tujhe yaha na thahar...
gazal
dekh teri vajaha se ye haalat ho gayi
subah huee kab shaam aur kab raat ho gayi ...
kyu nahi poonchha ki mera haal kaisa hai
is soch mei ki aayega tu raat ho gayi....
subah huee kab shaam aur kab raat ho gayi ...
kyu nahi poonchha ki mera haal kaisa hai
is soch mei ki aayega tu raat ho gayi....
Sunday, May 15, 2011
muktak
ardaas kiye
mannat maangi,
ek chhoti si
khwahish jagii,
panchi ban
udane ki chaahat....
saksham hone ka
parichay yah ,
hai niri akeli
door talak ,
ghanghor
andhere ki aahat ....
mannat maangi,
ek chhoti si
khwahish jagii,
panchi ban
udane ki chaahat....
saksham hone ka
parichay yah ,
hai niri akeli
door talak ,
ghanghor
andhere ki aahat ....
Saturday, March 12, 2011
मेरा मन
जाने कुछ कैसा होता है
हँसता है ना मन रोता है ..
चीज़ें रखकर भूल रहा मन
खुद को तब से ढूँढ रहा है ...
ना मालूम किधर छूटा था
तितली को मन पकड़ रहा था ...
वो तो गुम हो गयी आँख से
फिर भी मनवा ढूँढ रहा था ...
धरती और आकाश को नापा
फिर भी जाने कहा छुपा था..
मेरा मन था पगलाया सा
इसीलिए तो नहीं मिला था....
हँसता है ना मन रोता है ..
चीज़ें रखकर भूल रहा मन
खुद को तब से ढूँढ रहा है ...
ना मालूम किधर छूटा था
तितली को मन पकड़ रहा था ...
वो तो गुम हो गयी आँख से
फिर भी मनवा ढूँढ रहा था ...
धरती और आकाश को नापा
फिर भी जाने कहा छुपा था..
मेरा मन था पगलाया सा
इसीलिए तो नहीं मिला था....
Friday, March 11, 2011
ख़याल
सोचा की मैं दूर कहीं
जाकर बिल में छुप जाऊ
कभी नहीं दीखू तुझको
और कभी याद ना आऊ....
बहोत दिनों तक इस ख़याल को
मन में अपने पाला
बहोत दिनों तक बात नहीं की
चाहे मन तड़पाया....
चाह जगी मन में फिर इक दिन
देख तुझे मैं पाऊ
दूर से तुझको देख कहीं मैं
फिर से छुप-छुप जाऊ....
पर मेरा पागल सा मनवा
इसी आस में रहता
कैसे भी आकर के मुझको
तू अपनी सी कहता ....
लुका छुपी में खुद को अब मैं
थका थका सा जानूं
तू ही मेरी धड़कन, जीवन
तुझ बिन कैसे मानूं....
जाकर बिल में छुप जाऊ
कभी नहीं दीखू तुझको
और कभी याद ना आऊ....
बहोत दिनों तक इस ख़याल को
मन में अपने पाला
बहोत दिनों तक बात नहीं की
चाहे मन तड़पाया....
चाह जगी मन में फिर इक दिन
देख तुझे मैं पाऊ
दूर से तुझको देख कहीं मैं
फिर से छुप-छुप जाऊ....
पर मेरा पागल सा मनवा
इसी आस में रहता
कैसे भी आकर के मुझको
तू अपनी सी कहता ....
लुका छुपी में खुद को अब मैं
थका थका सा जानूं
तू ही मेरी धड़कन, जीवन
तुझ बिन कैसे मानूं....
प्रीत पराई
रात घनेरी धीमे-धीमे
होले से मन टीस लगाई
दुविधा मन की समझ ना आयी...
बात ज़रा सी कही किसी ने
सरल baat ही सत्य कहाई
पीड़ा क्षण में दूर भगाई...
ईश मानकर चली जिसे में
प्रेम-सुधा नयनन को भाई
क्या जाने क्यों प्रीत पराई ???
होले से मन टीस लगाई
दुविधा मन की समझ ना आयी...
बात ज़रा सी कही किसी ने
सरल baat ही सत्य कहाई
पीड़ा क्षण में दूर भगाई...
ईश मानकर चली जिसे में
प्रेम-सुधा नयनन को भाई
क्या जाने क्यों प्रीत पराई ???
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- bhawana
- अपने विचारों मैं उलझी किन राहों मैं नहीं भटकी खुद की तलाश में वक्त को बिताती हूँ पर जवाब नहीं पाती हूँ .... लोगों से मिलती हूँ ताल भी मिलाती हूँ अजनबी होने से थोडा खौफ खाती हूँ पर खुद को बहुत दूर बहुत दूर पाती हूँ ....