आँसुओं को रोक मत,
ये बात मानो प्रिय तुम।
नैन लगते हैं थके से,
बोझ उतारो प्रिय तुम।
जन्दगी मुश्किल हुई
मानते हैं हम सभी
शब्द-भेदी बाण से
भेदना न दिल कभी
धीर हो तो जीत है
राहगीर जानो तुम। नैन......।।
प्रकृति की गोद में
खेलता है हर मनु
सीखता कहाँ से है
बोलना कटु-कटु
पाश्विक प्रवृत्ति को
दो जरा विराम तुम। नैन......।।
मस्त फिजाओं में किसी
रागिनी को छेड दें
उमंग से भरी हुई
श्वास थोडी खींच ले
मुसीबतों से खेलना
सीख लोगे प्रिय तुम। नैन.....।।
Sunday, August 23, 2009
geet
geet
एक सितारा टिमटिमाता नजर आया है,
मेरे मन को बहलाने कोई आया है।
दुःख है बडा आँसुओं में डूब गये हम,
भावनाओं के भँवर से जूझ रहे हम,
अब आस्थाओं का सवेरा मुस्कुराया है।
बरखा की बूँद गिरी और धरा खिली,
खेतों में फसलों की चादर मिली,
मस्त परिन्दा भी अब गुनगुनाया है।
पंछी बन बावरा मन घूमता फिरे,
डाल-डाल, पांत-पांत झूमता फिरे,
गीतों के मधुरस से मन भिगोया है।
बीती हुई बात को तू सोचता है क्यूँ,
बार-बार मन की परत खोलता है क्यूँ,
नीम की कडवाहटों से रस बनाया है।
लग रही निशा मुझे भी कुछ भली-भली
देखे हैं सुख-दुःख हर गाँव हर गली
तजुर्बों को मैंने साँसों में पिरोया है।
Bhawana
एक सितारा टिमटिमाता नजर आया है,
मेरे मन को बहलाने कोई आया है।
दुःख है बडा आँसुओं में डूब गये हम,
भावनाओं के भँवर से जूझ रहे हम,
अब आस्थाओं का सवेरा मुस्कुराया है।
बरखा की बूँद गिरी और धरा खिली,
खेतों में फसलों की चादर मिली,
मस्त परिन्दा भी अब गुनगुनाया है।
पंछी बन बावरा मन घूमता फिरे,
डाल-डाल, पांत-पांत झूमता फिरे,
गीतों के मधुरस से मन भिगोया है।
बीती हुई बात को तू सोचता है क्यूँ,
बार-बार मन की परत खोलता है क्यूँ,
नीम की कडवाहटों से रस बनाया है।
लग रही निशा मुझे भी कुछ भली-भली
देखे हैं सुख-दुःख हर गाँव हर गली
तजुर्बों को मैंने साँसों में पिरोया है।
Bhawana
Tuesday, August 18, 2009
kshanika
आसमान
बहुत दूर है
छूने की चाह
मन में भरपूर है ....
पैरों की ज़मीन
जो करीब थी
आज बहुत दूर है ...
पैसे और शोहरत के लिए
छोड़ दिया घर मैंने
आकांक्षाएं इंसान की
बड़ी क्रूर है....
बहुत दूर है
छूने की चाह
मन में भरपूर है ....
पैरों की ज़मीन
जो करीब थी
आज बहुत दूर है ...
पैसे और शोहरत के लिए
छोड़ दिया घर मैंने
आकांक्षाएं इंसान की
बड़ी क्रूर है....
do line ....
स्वप्न है एक भावना ,
है स्वप्न की जीवात्मा ,
ढूढता है मन जिसे
वो है कहाँ परमात्मा ..?????
है स्वप्न की जीवात्मा ,
ढूढता है मन जिसे
वो है कहाँ परमात्मा ..?????
gazal
सब कुछ अब तो एक फ़साना लगता है
जीना तो बस एक बहाना लगता है ...
सब के सब जाने पहचाने लगते है
बेसुध बेबस एक दीवाना लगता है ...
उल्फत की गलियों में फिरता रहता है
यादें तो बस एक तराना लगता है ...
चलते-चलते बार - बार रुक जाता है
हर चेहरा जाना - पहचाना लगता है ...
हंस- हंसकर अपने किस्से कह जाता है
उसका आना मुझे सताना लगता है ...
जीना तो बस एक बहाना लगता है ...
सब के सब जाने पहचाने लगते है
बेसुध बेबस एक दीवाना लगता है ...
उल्फत की गलियों में फिरता रहता है
यादें तो बस एक तराना लगता है ...
चलते-चलते बार - बार रुक जाता है
हर चेहरा जाना - पहचाना लगता है ...
हंस- हंसकर अपने किस्से कह जाता है
उसका आना मुझे सताना लगता है ...
gazal
उसकी आँखों में आंसू के मोती रहे
तो हसाया नहीं कीजिये ...
उसके हाथों में गम की लकीरें रहे
तो खुशियाँ नहीं दीजिये ...
मेरे मन की ख़ुशी भी उसी मन रहे
मेरे लैब की हंसी भी उसी को मिले
वो सपने सुनहरे जब बुनता हो तो
नश्तर न चुभो दीजिये ...
वो हर वक्त तेरी नज़र में रहे
वो चले तो तू उसका सहारा बने
और ज़मी-आसमा जब मिलते हो तो
उनको तकलीफ न दीजिये ....
तो हसाया नहीं कीजिये ...
उसके हाथों में गम की लकीरें रहे
तो खुशियाँ नहीं दीजिये ...
मेरे मन की ख़ुशी भी उसी मन रहे
मेरे लैब की हंसी भी उसी को मिले
वो सपने सुनहरे जब बुनता हो तो
नश्तर न चुभो दीजिये ...
वो हर वक्त तेरी नज़र में रहे
वो चले तो तू उसका सहारा बने
और ज़मी-आसमा जब मिलते हो तो
उनको तकलीफ न दीजिये ....
gazal
खामोशियाँ भी ज़हर घोलती है ...
बातें हमेशा नहीं बोलती है ....
रहता है चुप आजकल वो हरदम
दिल की लगी भी बहुत बोलती है ....
लाखों सवाल उठ रहें ज़हन में
तकदीर भी क्या गज़ब तोलती है ....
शायद नशे में रहता है अब भी
सर जो छाडे तो बहुत बोलती है ...
चौराहे पर खड़ी थी मोहब्बत
आवारा गलियों में डोलती है .....
कहा था न मैंने परवाना न बन
शम्मा जलाकर ही मन तोलती है .....
बातें हमेशा नहीं बोलती है ....
रहता है चुप आजकल वो हरदम
दिल की लगी भी बहुत बोलती है ....
लाखों सवाल उठ रहें ज़हन में
तकदीर भी क्या गज़ब तोलती है ....
शायद नशे में रहता है अब भी
सर जो छाडे तो बहुत बोलती है ...
चौराहे पर खड़ी थी मोहब्बत
आवारा गलियों में डोलती है .....
कहा था न मैंने परवाना न बन
शम्मा जलाकर ही मन तोलती है .....
Wednesday, August 12, 2009
anaam rishte
rishton ki
giraft mei
kaid hai
har manushya ...
bandhta hai
ek hi baar
par jeevan bhar ke liye
kabhi sath nahi choottaa...
chaahe man baeri ho jaaye
chaahe algaav ho.....
fir bhi antas mei kahin
ghar banaye rahte hai ye...
kuchh jude - unjude bhi
meethe bhi , kadve bhi
adhoore pade kuchh rishte
galiyeren dhoodhte hai
par fir bhi ta-umra
apna astitva talaashte rahte hai
jeete hai
bina astitva ke
kuchh anaam rishte .....
giraft mei
kaid hai
har manushya ...
bandhta hai
ek hi baar
par jeevan bhar ke liye
kabhi sath nahi choottaa...
chaahe man baeri ho jaaye
chaahe algaav ho.....
fir bhi antas mei kahin
ghar banaye rahte hai ye...
kuchh jude - unjude bhi
meethe bhi , kadve bhi
adhoore pade kuchh rishte
galiyeren dhoodhte hai
par fir bhi ta-umra
apna astitva talaashte rahte hai
jeete hai
bina astitva ke
kuchh anaam rishte .....
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- bhawana
- अपने विचारों मैं उलझी किन राहों मैं नहीं भटकी खुद की तलाश में वक्त को बिताती हूँ पर जवाब नहीं पाती हूँ .... लोगों से मिलती हूँ ताल भी मिलाती हूँ अजनबी होने से थोडा खौफ खाती हूँ पर खुद को बहुत दूर बहुत दूर पाती हूँ ....