Friday, March 11, 2011

प्रीत पराई

रात घनेरी धीमे-धीमे
होले से मन टीस लगाई
दुविधा मन की समझ ना आयी...

बात ज़रा सी कही किसी ने
सरल baat ही सत्य कहाई
पीड़ा क्षण में दूर भगाई...

ईश मानकर चली जिसे में
प्रेम-सुधा नयनन को भाई
क्या जाने क्यों प्रीत पराई ???

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About Me

अपने विचारों मैं उलझी किन राहों मैं नहीं भटकी खुद की तलाश में वक्त को बिताती हूँ पर जवाब नहीं पाती हूँ .... लोगों से मिलती हूँ ताल भी मिलाती हूँ अजनबी होने से थोडा खौफ खाती हूँ पर खुद को बहुत दूर बहुत दूर पाती हूँ ....