Sunday, October 3, 2010

बतिया

कितने दिन बीतें
खाली रतियाँ
याद आती है
तेरी बतिया ..
जिसके आने से
खिल उठा था गुल मेरा
बोलती है वीरान पड़ी
वो गलियां ...
किताबों में संभाले हुए
रखा था जिन्हें
बेजान सी महकती है
वो कालिया ....

1 comment:

Deepak Shukla said...

Hi..

Virah hai deta har kshan aisa...
Jisme bas sannata hota...
bhav-vihal ho kar man rota..
ankhiyon main andiyara hota...

sach main virah badi kathin tapasya hai...aapke shabdon se jahir hai...

Deepak...

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About Me

अपने विचारों मैं उलझी किन राहों मैं नहीं भटकी खुद की तलाश में वक्त को बिताती हूँ पर जवाब नहीं पाती हूँ .... लोगों से मिलती हूँ ताल भी मिलाती हूँ अजनबी होने से थोडा खौफ खाती हूँ पर खुद को बहुत दूर बहुत दूर पाती हूँ ....