Friday, June 25, 2010

ek baat

भला यह भी हुई क्या बात
जो दीखता दुखी इंसान
चाहे आज तो मालिक ही
आ जाए तो मैं कह दू .........
की मन पर बोझ लगता है
उफनती आँख से गंगा
की थोडा आज मैं रो लू ..................

मैं अधना सा मलाज़िम
आज दिल की बात कह जाऊ
तेरी नज़रों मैं मैं भी
एक बड़ा गुस्ताख बन जाऊ
की दुनिया है बड़ी नीरस
की एक -दो दिन में ही में
इस जहाँ से आज विदा ले लू...................

यह कैसी प्यास है की
प्यास ही बुझती नहीं मेरी
की में तो तृप्त हो जाऊ
सुखी मिल जाए गर कोई
तो चल रच फिर से एक दुनिया
रहे एक आस मन में फिर
की थोडा और में जी लू
की थोडा और में जी लू............................

MA Pre. 2002

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About Me

अपने विचारों मैं उलझी किन राहों मैं नहीं भटकी खुद की तलाश में वक्त को बिताती हूँ पर जवाब नहीं पाती हूँ .... लोगों से मिलती हूँ ताल भी मिलाती हूँ अजनबी होने से थोडा खौफ खाती हूँ पर खुद को बहुत दूर बहुत दूर पाती हूँ ....