रात अचानक
कोई तीखी सी आवाज़
मेरे कानों को बेध गयी ...
आँखें खुली
कानों से सुनने का प्रयास ,
वही सुर
वही आवाज़,
झींगुर है ...
जो अक्सर
रातों में जागा करता है ,
इंसानों के सो जाने के बाद
वो, प्रेमगीत गाता है ....
यहाँ तो मनुष्य
प्रेम की भाषा ही
भूल गया है
तभी तो कानों में
चुभता है
उसका गया हुआ
प्रेमगीत ......
Saturday, June 26, 2010
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- bhawana
- अपने विचारों मैं उलझी किन राहों मैं नहीं भटकी खुद की तलाश में वक्त को बिताती हूँ पर जवाब नहीं पाती हूँ .... लोगों से मिलती हूँ ताल भी मिलाती हूँ अजनबी होने से थोडा खौफ खाती हूँ पर खुद को बहुत दूर बहुत दूर पाती हूँ ....
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