Friday, June 25, 2010

तुम बिन

आँख मैं आंसुओ के मोती पिरोकर
करती दुआ मैं सर को निवानकर
छूटे न तेरे आँचल की छांया
मेरी ज़रुरत है तेरा ही साया
लगता है तुझ बिन अधूरी सी हूँ मैं
ममता के शब्दों मैं डूबी सी हूँ मैं
तेरी ही सूरत को देखा करून मैं
हर वक्त तुझको ही पूजा करू मैं
मेरी तो दुनिया तुझी से सजी है
तुझ बिन ये दुनिया बेनूर सी है
क़दमों मैं तेरे सारा जहाँ है
तू ही नहीं तो वो जन्नत कहाँ है
तुझसे तो मेरी दुनिया जुडी है
तू ही नहीं तो ये क्या ज़िन्दगी है
तुझसे ख़ुशी है तू ही सहारा
तू ही नहीं तो क्या है हमारा
तेरी ज़रुरत है जीवन मैं हरपल
तुझको मैं मांगू इश्वर से प्रतिपल
अमावस की रातें है गुम है उजास
माँ तुम बिन घर आज लगता है उदास ................

31st march,2000

3 comments:

आशीष मिश्रा said...

बहोत खुब कहा आपने शुभकामनाए

sanu shukla said...

बहुत सुंदर रचना..

vandana gupta said...

बहुत भावभीनी रचना।

Followers

About Me

अपने विचारों मैं उलझी किन राहों मैं नहीं भटकी खुद की तलाश में वक्त को बिताती हूँ पर जवाब नहीं पाती हूँ .... लोगों से मिलती हूँ ताल भी मिलाती हूँ अजनबी होने से थोडा खौफ खाती हूँ पर खुद को बहुत दूर बहुत दूर पाती हूँ ....