आँख मैं आंसुओ के मोती पिरोकर
करती दुआ मैं सर को निवानकर
छूटे न तेरे आँचल की छांया
मेरी ज़रुरत है तेरा ही साया
लगता है तुझ बिन अधूरी सी हूँ मैं
ममता के शब्दों मैं डूबी सी हूँ मैं
तेरी ही सूरत को देखा करून मैं
हर वक्त तुझको ही पूजा करू मैं
मेरी तो दुनिया तुझी से सजी है
तुझ बिन ये दुनिया बेनूर सी है
क़दमों मैं तेरे सारा जहाँ है
तू ही नहीं तो वो जन्नत कहाँ है
तुझसे तो मेरी दुनिया जुडी है
तू ही नहीं तो ये क्या ज़िन्दगी है
तुझसे ख़ुशी है तू ही सहारा
तू ही नहीं तो क्या है हमारा
तेरी ज़रुरत है जीवन मैं हरपल
तुझको मैं मांगू इश्वर से प्रतिपल
अमावस की रातें है गुम है उजास
माँ तुम बिन घर आज लगता है उदास ................
31st march,2000
Friday, June 25, 2010
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- bhawana
- अपने विचारों मैं उलझी किन राहों मैं नहीं भटकी खुद की तलाश में वक्त को बिताती हूँ पर जवाब नहीं पाती हूँ .... लोगों से मिलती हूँ ताल भी मिलाती हूँ अजनबी होने से थोडा खौफ खाती हूँ पर खुद को बहुत दूर बहुत दूर पाती हूँ ....
3 comments:
बहोत खुब कहा आपने शुभकामनाए
बहुत सुंदर रचना..
बहुत भावभीनी रचना।
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