Sunday, November 24, 2013

जाने कुछ कैसा होता है
हँसता है ना मन रोता है ..
चीज़ें रखकर भूल रहा मन
खुद को तब से ढूँढ रहा है ...
ना मालूम किधर छूटा था
तितली को मन पकड़ रहा था ...
वो तो गुम हो गयी आँख से
फिर भी मनवा ढूँढ रहा था ...
धरती और आकाश को नापा
फिर भी जाने कहा छुपा था..
मेरा मन था पगलाया सा
इसीलिए तो नहीं मिला था....

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About Me

अपने विचारों मैं उलझी किन राहों मैं नहीं भटकी खुद की तलाश में वक्त को बिताती हूँ पर जवाब नहीं पाती हूँ .... लोगों से मिलती हूँ ताल भी मिलाती हूँ अजनबी होने से थोडा खौफ खाती हूँ पर खुद को बहुत दूर बहुत दूर पाती हूँ ....