Monday, July 26, 2010

vichitra praani

मैं ऐसी वैसी नहीं हूँ .कहीं आप यह न सोच बैठना की मैं अपाहिज सी , अपंग सी या मंदबुद्धि सी हूँ. न ही मुझे तीन हाथ या तीन पैर है .यहाँ तक की अंगूठे और अंगुलिया भी एकदम बराबर . वैसी ही हूँ दिखने में जैसे की सामान्य जन होते है . बस आम लोगों की तरह ठहाके लगाकर नहीं हंसती .न ही आम लोगों की तरह बातें ही बना सकती हूँ .दुःख होता है की मैं ऐसी क्यों हूँ .शुक्र गुजार हूँ की थोड़ी सी प्रसिद्धि भी मिली है मुझे .पर मैं औरों की तरह नहीं हूँ . नियति ने मुझे कुछ और ही बना दिया . लोग कहते है मैं कलाकार हूँ , जन -साधारण नहीं हूँ. येही सबसे बड़ी चोट हो गयी की मैं साधारण नहीं हो सकी . कलाकार हो गयी जो रोने के बहाने ढूढ़ लेता है .मन बहुत निर्मल जो है . किसी को रोता नहीं देख पाती . इसलिए नहीं की अच्छा नहीं लगता . इसलिए की खुद रो पड़ती हूँ . और तब बड़ा अजीब लगता है जब कोई अपनी बताते बताते मेरे आंसू पोंछने लगता है वो भी खुद का सारा दुःख-दर्द भूलकर मैं ऐसी ही हूँ. हूँ न मैं विचित्र प्राणी.

1 comment:

Deepak Shukla said...

Hi..

Kyon tumne samjha hai aisa..
Tum to sahaj se vyakti ho..
Roti, gaati duniya ke sang..
Tum bhi to sang main chalti ho..

Jaisi duniya vaise aap.. Vichitr bilkul nahi..

Deepak..

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About Me

अपने विचारों मैं उलझी किन राहों मैं नहीं भटकी खुद की तलाश में वक्त को बिताती हूँ पर जवाब नहीं पाती हूँ .... लोगों से मिलती हूँ ताल भी मिलाती हूँ अजनबी होने से थोडा खौफ खाती हूँ पर खुद को बहुत दूर बहुत दूर पाती हूँ ....