दो अजनबी
आ टकराए
एक मोड़ पर
साथ चलने लागे
राह एक ही
विचारों में भेद
मकसद भी एक
गंतव्य विभेद होने लगे..
मन मत्व्कांशी
डर पिछड़ जाने का
होड़ सब कुछ पाने की
एक दुसरे को छलने लगे ....
त्याग तो नहीं पर ,
'मैं ' ज़रूर था
शोहरत , नाम और पैसा ;
ज़िन्दगी के माने बदलने लगे ....
फूलों की मुस्कान ,
पंछियों की चुहुक
बढ़ते रहने की हूक़,
जिम्मेदारियों से भागने लगे....
कैसा नीरस सफ़र
कैसे ये हमसफ़र
कुम्हलाये बोझिल चेहरे
प्यार और मिठास भी खोने लगे .....
Saturday, June 26, 2010
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- bhawana
- अपने विचारों मैं उलझी किन राहों मैं नहीं भटकी खुद की तलाश में वक्त को बिताती हूँ पर जवाब नहीं पाती हूँ .... लोगों से मिलती हूँ ताल भी मिलाती हूँ अजनबी होने से थोडा खौफ खाती हूँ पर खुद को बहुत दूर बहुत दूर पाती हूँ ....
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