जी रहा हूँ या की जाने मर रहा हूँ मैं
ज़िन्दगी है दर्द उसको पी रहा हूँ मैं ....
अल्फाज़ को तुम तौल कर ही बोलना साथी ,
फिर न कहना की बहुत पछता रहा हूँ मैं ....
झुक जाएगा अम्बर ज़मीन की हर पुकार पर ,
जानता हूँ फिर भी क्या झुठला रहा हूँ मैं .....
क्या सुखन है खुद को देने मैं ज़रा तकलीफ ,
प्यार शायद इसलिए ही कर रहा हूँ मैं .....
Friday, September 25, 2009
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- bhawana
- अपने विचारों मैं उलझी किन राहों मैं नहीं भटकी खुद की तलाश में वक्त को बिताती हूँ पर जवाब नहीं पाती हूँ .... लोगों से मिलती हूँ ताल भी मिलाती हूँ अजनबी होने से थोडा खौफ खाती हूँ पर खुद को बहुत दूर बहुत दूर पाती हूँ ....
2 comments:
bahut sunder abhiwaktiyan ....aap ko yaha dekhker behad achaa laga hamari shubhkamnayen
Aap bahut achha likhte ho dts realy great.......
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